कॉमरेड जगदीश मास्टर और कॉमरेड रामायण राम की शहादत की चालीसवीं वर्षगांठ मनाई गई

भोजपुर में पार्टी के संस्थापक शहीद कॉमरेड जगदीश मास्टर और सामंतवाद विरोधी किसान संघर्ष के हिरावल योद्धा कॉमरेड रामायण राम के 41 वें शहादत दिवस के अवसर पर आरा, बिहिया और एकवारी में आयोजन हुए। 40 साल पूर्व 10 दिसंबर 1972 को वे बिहार के भोजपुर जिले के बिहिया में शहीद हुए थे।


संयोगवश, 10 दिसंबर 1935 को ही कॉमरेड जगदीश का जन्म सहार प्रखंड के एकवारी गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने सामंती भेदभाव और दमन-उत्पीड़न के हालात देखे। उनके किसान पिता ने उन्हें स्कूली शिक्षा दी। स्कूली शिक्षा के बाद वे आरा शहर के जैन स्कूल में विज्ञान के शिक्षक नियुक्त हुए। सामंती शक्तियों द्वारा गरीब-मेहनतकश लोगों के शोषण-उत्पीड़न की घटनाएं उन्हें बेहद बेचैन करती थीं। उनके साथ संघर्ष में शामिल पार्टी के पोलितब्यूरो सदस्य का. नंदकिशोर प्रसाद ने आरा में आयोजित जनसभा में कहा कि हमलोग गरीब-मेहनतकशों के शोषण-उत्पीड़न को खत्म करना चाहते थे। पहले हमने हरिजनिस्तान की मांग के साथ आरा शहर में एक बड़ी रैली की। लेकिन बहुत जल्दी हमें लगने लगा कि इस रास्ते से सामंती व्यवस्था खत्म नहीं होगी। सामंती समाज को बदलने के लिए हमें रास्ते की तलाश थी। उसी वक्त नक्सलबाड़ी विद्रोह हुआ, जिसने हमलोगों को आकर्षित किया। मास्टर साहब जान-बूझकर विदाउट टिकट ट्रेन में यात्रा करके पकड़े गए, ताकि जेल में नक्सलियों से मुलाकात हो सके। उन्होंने हमारे भीतर गरीब जनता से गहरा प्रेम और सामंती शक्तियों के प्रति तीखी घृणा जगाई। वे हमारे नेता थे।


आरा में प्राइवेट बस स्टैंड के पास वर्षों से चिरप्रतीक्षित का. जगदीश स्मृति भवन निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। जनसभा इसी स्थल पर आयोजित थी। आज यह सब लोग जानते हैं कि किस तरह जब वोट का भी अधिकार गरीबों को नहीं था, तब का. जगदीश मास्टर और का. रामनरेश राम उनके इस संवैधानिक अधिकार के लिए आगे आए। चुनावों के जरिए सामंतों के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश की। लेकिन सामंतों को यह संवैधानिक तरीका मंजूर न था। जब का. रामनरेश राम 1967 में विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे, तब जगदीश मास्टर उनके चुनाव एजेंट थे और जब अपने गांव में उन्होंने सामंतों द्वारा फर्जी वोटिंग का विरोध किया तो उन पर जानलेवा हमला हुआ। जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष में जिंदगी की जीत हुई। और अगले पांच वर्षों में ही का. जगदीश मास्टर, का. रामनरेश राम और का. रामेश्वर यादव के नेतृत्व में जिस जुझारू प्रतिरोध की शुरूआत हुई, उसने भोजपुर के सामंती समाज के पुराने ढांचे को बदलकर रख दिया। हालांकि वे पुराने वर्चस्व को हासिल करने की हरसंभव कोशिश करते रहे हैं, उन्होंने जनसंहार पर जनसंहार रचाए हैं, पर पुराना जमाना फिर लौटकर नहीं आया।


आरा और बिहिया में आयोजित जनसभाओं के मुख्य वक्ता पोलितब्यूरो सदस्य का. स्वदेश भट्टाचार्य थे। उन्होंने कहा कि गरीबों के लिए लोकतंत्र, आजादी, इंसाफ के लिए जगदीश मास्टर ने लड़ाई की शुरूआत की थी। उनकी शहादत के बाद अब तक कई पार्टियों की सरकारें आई-गईं, सब गरीबों की बातें करती रहीं, पर गरीबों को भुखमरी और मृत्यु की ओर धकेलती रहीं। नीतीश ने जिन्हें महादलित नाम दिया और जिन्हें जमीन का झांसा दिया, उन्हें जमीन तो नहीं मिली, पर उन तक शराब जरूर पहुंचा दी गई। आरा में गरीबों की लाशों की संख्या बढ़ती जा रही है, मृतकों के परिजन रो रहे हैं, कई घरों में कोई अर्थोपार्जन करने वाला नहीं बचा है और नीतीश कुमार राजस्व बढ़ाने का तर्क दे रहे हैं। जहरीली शराब से यह जो जनसंहार किया गया है, ये वही लोग हैं, जिनकी जिंदगी की बेहतरी के लिए जगदीश मास्टर ने शहादत दी थी और जिनके प्रति सत्ताधारी आज भी निर्मम हैं। इसलिए सिर्फ गरीब ही नहीं, बल्कि समाज में जो लोग भी सचमुच बदलाव चाहते हैं, उन्हें जगदीश मास्टर की राह पर चलना होगा।


शहादत के वक्त मास्टर साहब भाकपा(माले) के राज्य कमेटी सदस्य थे। मास्टर साहब सरीखे जननेता को  जनता ने हमेशा उन्होंने अपने दिलों में बसाए रखा। सामंती शक्तियां, पुलिस प्रशासन और सत्ता उनकी याद तक से डरती रहीं। बिहिया में पहले भी एक बार पार्टी की ओर से मास्टर जगदीश और रामायण राम का स्मारक बनाने की कोशिश की गई थी, पर पुलिस ने उसे कामयाब होने नहीं दिया था। लेकिन इस बार 10 दिसंबर 2012 को उनके स्मारक का शिलान्यास का. स्वदेश भट्टाचार्य ने किया। गरीबों के उसी टोले में का. दिनेश मुसहर ने उनके स्मारक के लिए जमीन दी, जहां 40 साल पहले जगदीश मास्टर और रामायण राम शहीद हुए थे। आज उस जमीन की अच्छी खासी कीमत हो गई है। भ्रम में ही सही, जो ऐतिहासिक गलती गरीबों से हुई थी, उसे उन्होंने ही सुधार दिया। चालीस साल पहले हुआ यह था कि स्त्रियों की मर्यादा से खेलने वाले, गरीबों का उत्पीड़न करने और प्रशासन-पुलिस को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले एक जालिम सामंत थाना सिंह का अंत करके जब जगदीश मास्टर और रामायण राम लौट रहे थे, तो सामंती शक्तियों के हिमायतियों ने चोर-डाकू कहकर शोर मचाया और गफलत में मुसहर लोगों के हाथों वे दोनों मारे गए। गरीब-मेहनतकश जनता पर हमला करना पार्टी सिद्धांतों के विरुद्ध था, इस कारण कामरेडों ने उन पर गोली नहीं चलाई। रामायण राम ने का. जगदीश से निकल जाने के लिए कहा, पर अपने साथी को छोड़कर जाना उन्हें मंजूर न था। बाद में जब मुसहर समुदाय के लोगों के पता चला कि उनके हाथों किसकी हत्या हुई है, तो वे गहरे शोक में डूब गए। स्मारक के शिलान्यास के मौके पर दिनेश मुसहर और उनकी पत्नी एतवारो देवी के चेहरे पर मौजूद स्वाभिमान सिर्फ उनका ही स्वाभिमान नहीं था, बल्कि बिल्कुल गरीब-मेहनतकश वर्ग से आने वाली उस जनता का भी स्वाभिमान था, जिसने अपने संघर्षों, अपने खून, अपने आंसुओं से सींचकर उस पार्टी को बनाया, जिसे जगदीश मास्टर और उनके साथियों ने भोजपुर में स्थापित किया था और जहां से उसका पूरे बिहार और देश में विस्तार हुआ।


बिहिया में शिलान्यास से पूर्व झंडातोलन का. दिनेश मुसहर ने किया। जनसभा को पार्टी के राज्य कमेटी सदस्य सुदामा प्रसाद और अरुण सिंह ने भी संबोधित किया। संचालन उत्तम गुप्ता ने किया। आरा में जनसभा का संचालन का. दिलराज प्रीतम ने किया। दोनों सभाओं में पार्टी के बिहार राज्य सचिव का. कुणाल और का. अमर भी मौजूद थे। एकवारी में का. जगदीश मास्टर के स्मारक पर खेमस के जिला अधयक्ष का. सिद्धनाथ राम समेत कई स्थानीय कामरेडों ने श्रद्धांजलिदी। आरा में जसम के राज्य अध्यक्ष रामनिहाल गुंजन और बिहिया में राष्ट्रीय पार्षद बलभद्र समेत कई बुद्धिजीवी और नागरिक भी इन आयोजनों में शामिल हुए। जनता के बुद्धिजीवियों और साहित्यकार-संस्कृतिकृमियों के लिए भी मास्टर जगदीश और उनके साथियों का जीवन एक मिसाल रहा है। वे न केवल जनता की राजनीति और आंदोलन के लिए ही प्रेरणा बने, बल्कि साहित्य और संस्कृति पर उनका गहरा असर पड़ा। महाश्वेता देवी ने 'मास्टर साब' और मधुकर सिंह ने 'अर्जुन जिंदा है' नाम से जगदीश मास्टर पर केंद्रित उपन्यास लिखा। सुरेश कांटक ने 'रक्तिम तारा' नाम का महाकाव्य लिखा। कई कहानियों, कविताओं और जनगीतों में इनके संघर्ष की अनुगूंज दर्ज है।


अपने शहीदों की विरासत और स्मृतियों को संजो कर रखना किसी भी जीवंत समाज या सक्रिय संगठन की पहचान होता है। आरा में जगदीश मास्टर के नाम पर बन रहे स्मृति भवन को भोजपुर आंदोलन के गौरवशाली इतिहास, आंदोलन की उपलब्धियों और उसके नायकों की जीवनगाथा को संरक्षित करने के एक केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है।